बोधि प्रकाशन की योजना पुस्तक पर्व के तहत प्रकाशित होने वाले पहले सेट मैं शामिल पुस्तकों की सूचि इस प्रकार है:
कविता
१- भीगे डेनों वाला गरुण विजेंद्र
२- आकाश की जात बता भैया चंद्रकांत देवताले
३- जहाँ उजाले की एक रेखा खिंची है नन्द चतुर्वेदी
४- प्रपंच सार सुबोधिनी हेमंत शेष
कहानी
५- आठ कहानियां महीप सिंह
६- गुडnight इंडिया प्रमोद कुमार शर्मा
७- घग्घर नदी के टापू सुरेन्द्र सुन्दरम
अन्य
८- कुछ इधर की-कुछ उधर की हेतु भारद्वाज
९- जब समय दोहरा रहा हो इतिहास नासिरा शर्मा
१०- तारीख की खंजड़ी सत्यनारायण
पहला सेट मई १५ तक आने की सम्भावना है।
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010
किताब बचाने की खातिर
फेस बुक पर अभी एक नया ग्रुप देखा हिंदी किताबों के प्रेमियों का। बहुत अच्छा लगा।
किताबों को फिर से केंद्र में लाने के लिए बोधि प्रकाशन भी एक प्रयोग करने जा रहा है।
दस-दस किताबों के दस सेट 'बोधि पुस्तक-पर्व' के तहत प्रकाशित किये जायेंगे।
हर सेट की कीमत मात्र 100 रूपये होगी। यानि 80 से 100 पृष्ठ की प्रति पुस्तक केवल 10 रूपये में।
खास बात ये कि यह कीमत लागत से भी कम है। ये पुस्तकें गली-गली, मेले-मेले, नुक्कड़-चोराहे पर जन-जन के बीच विक्रय कि जाएँगी। इस योजना के बारे में अधिक जानना चाहें तो gmail.com पर या मेरे मोबाइल नंबर 98290-18087 पर संपर्क कर सकते हैं।
किताबों को फिर से केंद्र में लाने के लिए बोधि प्रकाशन भी एक प्रयोग करने जा रहा है।
दस-दस किताबों के दस सेट 'बोधि पुस्तक-पर्व' के तहत प्रकाशित किये जायेंगे।
हर सेट की कीमत मात्र 100 रूपये होगी। यानि 80 से 100 पृष्ठ की प्रति पुस्तक केवल 10 रूपये में।
खास बात ये कि यह कीमत लागत से भी कम है। ये पुस्तकें गली-गली, मेले-मेले, नुक्कड़-चोराहे पर जन-जन के बीच विक्रय कि जाएँगी। इस योजना के बारे में अधिक जानना चाहें तो gmail.com पर या मेरे मोबाइल नंबर 98290-18087 पर संपर्क कर सकते हैं।
शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
... कि जीवन ठहर न जाये
... कि जीवन ठहर न जाये
आओ कुछ करें
कुछ तो करें।
शहर के बाहर
उस मोडे के डेरे में
छुपकर बेरियाँ झडकाएं
और बटोरें खट्टे-मीठे बेर।
चलो ना आज
रेल कि पटरी पर
दस्सी रख कर
गाड़ी का इंतजार करें।
कितनी बड़ी हो जाती है दस्सी
गाड़ी के नीचे आकर।
चलो तो-
झोली में भर लें
छोटे-बड़े कंकर और ठिकरियां
चुंगी के पास वाले जोहड़े में
ठिकरियों से पानी में थालियाँ बनायें
छोटी-बड़ी थालियाँ।
थालियों में भर-भर सिंघाड़े निकालें।
छप-छप पैर चलाकर
जोहड़े में अन्दर-बाहर खेलें।
या कि -
गत्ते से काटें बड़े-बड़े सींग
काली स्याही में रंगकर
सींग लगाकर
उस मोटू को डराएँ
कैसे फुदकता है मोटू सींग देखकर।
कितना कुछ पड़ा है करने को।
अख़बारों से फोटुएं काट-काट कर
बड़े सारे गत्ते पर चिपकाना
धागे को स्याही में डुबोकर
कॉपी में 'फस्स' से चलाना
और उकेरना
पंख, तितली या बिल्ली का मुंह।
चोर-सिपाही, पोषम पा भाई पोषम पा
खेले कितने दिन गुज़र गए...
चलो ना कुछ करें
कहीं से भी सही - शुरू तो करें
... कि जीवन ठहर न जाये
चलो कुछ करें.... ।
आओ कुछ करें
कुछ तो करें।
शहर के बाहर
उस मोडे के डेरे में
छुपकर बेरियाँ झडकाएं
और बटोरें खट्टे-मीठे बेर।
चलो ना आज
रेल कि पटरी पर
दस्सी रख कर
गाड़ी का इंतजार करें।
कितनी बड़ी हो जाती है दस्सी
गाड़ी के नीचे आकर।
चलो तो-
झोली में भर लें
छोटे-बड़े कंकर और ठिकरियां
चुंगी के पास वाले जोहड़े में
ठिकरियों से पानी में थालियाँ बनायें
छोटी-बड़ी थालियाँ।
थालियों में भर-भर सिंघाड़े निकालें।
छप-छप पैर चलाकर
जोहड़े में अन्दर-बाहर खेलें।
या कि -
गत्ते से काटें बड़े-बड़े सींग
काली स्याही में रंगकर
सींग लगाकर
उस मोटू को डराएँ
कैसे फुदकता है मोटू सींग देखकर।
कितना कुछ पड़ा है करने को।
अख़बारों से फोटुएं काट-काट कर
बड़े सारे गत्ते पर चिपकाना
धागे को स्याही में डुबोकर
कॉपी में 'फस्स' से चलाना
और उकेरना
पंख, तितली या बिल्ली का मुंह।
चोर-सिपाही, पोषम पा भाई पोषम पा
खेले कितने दिन गुज़र गए...
चलो ना कुछ करें
कहीं से भी सही - शुरू तो करें
... कि जीवन ठहर न जाये
चलो कुछ करें.... ।
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
गौ सेवक
आज सुबह बच्चे को स्कूल छोड़ कर आते समय देखा कि एक गाय घायल हालत मैं बीच सड़क पर पड़ी है। लोग साइड से उसे बिना देखे आ जा रहे हैं। मैंने गाड़ी रोकी और देखने लगा कि आखिर इसे हुआ क्या है। तभी एक न्यूज़ पेपर का फोटोग्राफर भी वहां रुका। उसने घायल गाय का फोटो लिया और संवेदनावश वेदना में सहायता का दावा करने वाली एक संस्था को फ़ोन कर दिया। जवाब मिला गाड़ी एक-डेढ़ घंटे में पहुंचेगी। जब उसने अच्छी-खासी नाराजगी जताई तब कहा- कोशिश करते हैं जल्दी आने की।
इस बीच काफी 'गौ भक्त' जमा हो गए। जो गाय हिल भी नहीं पा रही थी उसे चारा डालने की होड़ लग गई।
इस पूरी घटना पर सवाल केवल दो- पहला ये कि जानवरों की मदद के नाम पर अच्छा खासा अनुदान और चंदा बटोरने वाली इन संस्थाओं की जिम्मेदारी कैसे तय हो? दूसरा ये कि गौ भक्ति सिर्फ चारा डालने से ही होती है?
इस बीच काफी 'गौ भक्त' जमा हो गए। जो गाय हिल भी नहीं पा रही थी उसे चारा डालने की होड़ लग गई।
इस पूरी घटना पर सवाल केवल दो- पहला ये कि जानवरों की मदद के नाम पर अच्छा खासा अनुदान और चंदा बटोरने वाली इन संस्थाओं की जिम्मेदारी कैसे तय हो? दूसरा ये कि गौ भक्ति सिर्फ चारा डालने से ही होती है?
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
देहदान के संदर्भ
कामरेड ज्योति बासु ने देहदान कर अपनी प्रतिबद्धता का अंतिम अध्याय हमारे सामने खोल दिया। इससे पहले जनकवि हरीश भादानी ने भी देहदान कर मिसाल कायम की। हनुमानगढ़ के कामरेड jaturam ने ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया। जयपुर के रामेश्वर शर्मा भी जाते जाते संसार को कुछ देकर ही गए।
ये प्रसंग हमारे लिए आदर्श तो प्रस्तुत करते हैं साथ ही कुछ सवाल भी खड़े करते हैं। इन्होने जिन मेडिकल स्टुडेंट्स के हित में अपनी देह दान में दी उनकी नैतिक स्थिति क्या है? डॉक्टर बनकर समाज में कदम रखने वाले ये स्टुडेंट्स इस देहदान की कीमत किस तरह चुकाते हैं ये आपसे छिपा नहीं है। नोबेल प्रोफ़शन कहे जाने वाले इस क्षेत्र में कितने नोबेल लोग बचे हैं?
आपकी राय इस मुद्दे पर आमंत्रित है कि क्या देहदान के हवाले से इन भावी doctors को किसी नैतिक बंधन में नहीं बांधा जाना चाहिए? क्या देहदान सशर्त होना चाहिए?
आपके विचार इस मुद्दे को गंभीर विमर्श का मुद्दा बनायेंगे, इस आशा के साथ....
ये प्रसंग हमारे लिए आदर्श तो प्रस्तुत करते हैं साथ ही कुछ सवाल भी खड़े करते हैं। इन्होने जिन मेडिकल स्टुडेंट्स के हित में अपनी देह दान में दी उनकी नैतिक स्थिति क्या है? डॉक्टर बनकर समाज में कदम रखने वाले ये स्टुडेंट्स इस देहदान की कीमत किस तरह चुकाते हैं ये आपसे छिपा नहीं है। नोबेल प्रोफ़शन कहे जाने वाले इस क्षेत्र में कितने नोबेल लोग बचे हैं?
आपकी राय इस मुद्दे पर आमंत्रित है कि क्या देहदान के हवाले से इन भावी doctors को किसी नैतिक बंधन में नहीं बांधा जाना चाहिए? क्या देहदान सशर्त होना चाहिए?
आपके विचार इस मुद्दे को गंभीर विमर्श का मुद्दा बनायेंगे, इस आशा के साथ....
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