शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

डा नामवर सिंह

दिल्ली प्रवास के दौरान इस बार जिनके सानिध्य का लाभ इस बार मिला उनमें डॉक्टर नामवर सिंह भी हैं। नामवर जी ने बोधि पुस्तक पर्व को सराहा और जयपुर आने पर प्रकाशन पर भी आने की इच्छा जताई। 'बोधि' के लिए यह गर्व और सम्मान की बात है।

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

धन्यवाद मित्रो

मित्र सुयश सुप्रभ की पोस्ट के जवाब में ढेर सारे मित्रों ने बोधि पुस्तक पर्व के प्रति अपना उत्साह प्रकट किया है। में इन सभी का हृदय से आभारी हूँ।
आप में से कई मित्रों ने इस कार्य में सहयोग देने की इच्छा जताई है। आपका स्वागत है। कुछ सवाल भी आये हैं और जिज्ञासाएं भी। एक-एक कर जवाब देने की कोशिश करता हूँ। कुछ छूट जाये तो जरूर बताएं।
हाँ यह सही है कि ये सेट बहुत se शहरों में उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। कुछ जगहों से पुस्तक विक्रताओं ने पहल करके सेट मंगाए हैं। दिल्ली में यह किताबघर, 4855/24, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 पर उपलब्ध है। किताबघर के उत्साही बन्धु मनोज शर्मा जी का सम्पर्क नंबर है- 9811175085फोन नंबर है- 011-30180011, 23266207
एक मित्र ने पूछा है वी पी पी ke bare main. आम तौर पर प्रकाशक वी पी पी से किताब भेजने में इसलिए कतराते हैं कि बिना छुडाये लौटने पर काफी खर्च हो जाता है और किताब भी कई जगह भटकते-भटकते खराब हो जाती है। फिर भी आप बोधि से वी पी पी द्वारा भी मंगा सकते हैं। इसके लिए आप अपना डाक का पूरा पता मुझे sms कर दें। एक अन्य तरीका यह भी है कि अगर कई सेट एक साथ मंगा रहे हों तो पैसे आप बोधि के बैंक खाते में जमा कर सकते हैं। इसके अलावा आप कोई और तरीका भी सुझा सकते हैं तो स्वागत है। आपके परिचय में कोई पुस्तक विक्रेता इस सेट के विपणन से जुड़ना चाहे तो उन्हें हमारा सम्पर्क दें।
जिन मित्रों ने सहयोग का प्रस्ताव किया है, वे भी विपणन और परसर में जुड़कर सहयोग कर सकते हैं।

मुलाकात 2

इस बार दिल्ली में J N U के आलावा जिन साथियों से मुलाकात संभव हो पाई वे हैं, भाई पृथ्वी परिहार और पंकज नारायण। पृथ्वी P T I में हैं और ख़बरों की तह तक जाने में विश्वास करते हैं। उनसे मिलना जैसे अपने आप से मिलना है। वाही ग्रामीण सादगी और बोद्धिक होते हुए भी दिमाग को दिल पर हावी ना होने देना। उनके साथ चाय का आनंद लिया और मंडी हाउस में युवा मित्र पंकज नारायण से मिलने चला गया।
पंकज में कुछ खास है। वे स्वभाव से विद्रोही हैं और अपना रास्ता खुद बनाने वालों में हैं। बेहद संवेदनशील यह कवि मित्र ऐसे मिले जैसे बरसों से बिछुड़े दो भाई अकस्मात मिल जाएँ कहीं॥ ऐसे प्यारे दोस्त फेस बुक से मिले हैं।

बुधवार, 28 जुलाई 2010

मुलाकात

परसों शाम दिल्ली से लौटा। इस बार दिल्ली कुछ खास थी। j n u में सुयश-रश्मि, गनपत, पुखराज जांगिड, हादी भाई और नितिन से मुलाकात हुई। सुयश सुप्रभ भाषा के जानकार और भाषा के प्रति काफी संवेदनशील हैं। हिंदी के वे जर्मन के भी ज्ञाता हैं। नई तकनीक का इस्तेमाल प्रिंट मीडिया के हित में कैसे हो, इस पर अच्छी चर्चा हुई। मित्र पुखराज जांगिड राजस्थानी ko भाषा के रूप में प्यार करने वालों में हैं लेकिन खास बात यह कि वे हमारे कुछ अन्य मित्रों की तरह इस मुद्दे पर आक्रामक नहीं हैं। वे राजस्थानी की ताकत और कमजोरिओं पर खुलकर बोले। गनपत जी साहित्य और पुस्तक प्रेमी हैं। रश्मि, सुयश की जीवन संगिनी हैं और खास बात यह की वे भी भाषागत संस्कारों को लेकर काफी संवेदनशील हैं। हादी भाई थियेटर से जुड़े हैं। सुयश जी के शब्दों में हादी भाई J N U में आर्ट थियेटर को जिन्दा रखने वालों में से हैं।
J N U वाकई बोद्धिक विमर्श और सीखने का स्थान है, खास तौर पर तब जबकि वहां ऐसे मित्र हों। मेरा दिल्ली जाना सार्थक हुआ।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

वे दिन

जाने क्यों कच्चे मकान के बाहर खुले थहडे पर गली के लड़कों के साथ पकड़म -पकड़ाई और शोले फिल्म की शूटिंग के दिन रह-रह कर याद आते हैं। याद आता है की टीटी नाम के लड़के को बसंती का रोल करने के लिए मनाने को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते थे। बाकी सभी लड़कों को काली माता की सोगंध देनी पड़ती थे की शूटिंग के बाद कोई इसको बसंती कहकर चिडायेगा नहीं...अगर किसी ने ऐसा किया तो कल की शूटिंग में बसंती वही बनेगा...
मुझे मालूम है साहित्य में इसे नास्टेल्जिया कहा जाता है, पर ये है तो क्या करें?

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

मुलाकात हुई-कुछ बात हुई

इस रविवार को चूरू से भाई दुला राम, भाई उम्मेद गोठवाल और जयपुर के मित्र सुरेन्द्र सहारण जवाहर कला केंद्र में मिले। फेसबुक पर हुई मुलाकात ज़मीन पर उतरी, अच्छा लगा। सच, गाँव-कस्बे से आया हुआ व्यक्ति शहर में कितना अजनबी सा रहता है कि अपने आस-पास के इलाके से किसी के आने-मिलने पर नए सिरे से जी उठता है। कहने को भले ही दुनिया एक गाँव बन गई है लेकिन अपना गाँव कैसा लगता है यह तो एक गाँव के दो जने मिलने पर ही पता लगता है। क्या मैंने कुछ गलत कहा?

शनिवार, 3 जुलाई 2010

बात

आप
जलती चिता को देखकर
रो रहे हैं ना
अब आपको क्या समझाउं
समझने की बात पर तो
आप रो देते हैं...

बहस

सुनो...
पत्ता जमीन पर गिरा ...
सुनो ...
बहस अभी जारी है
पत्ता ...
जमीन...

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मन

मन
खाली-खाली मन
मैनें तुम्हें याद किया
और
भर आया
मन