पिछले कुछ दिनों में घटनाओं की गति इतनी तेज रही कि समझ में आना मुश्किल हो गया कि खुश होऊं या उदास। दिल्ली में मित्रों से हुई मुलाकातों का जिक्र में पहले कर चुका हूँ। दिल्ली से लौटने के अगले ही दिन हमारी अत्यंत प्रिय मित्र सुष्मिता बेनर्जी का निधन हो गया। केवल 55 साल की आयु में उनका इस तरह अचानक बीच में से उठकर चल देना, विश्वास के काबिल नहीं लगता। दिल्ली जाते हुए उनसे मिला था। चाय के लिए कहा तो मैंने 'फिर कभी' पर टाल दिया। वह 'फिर कभी' अब कभी नहीं आएगा।
बोधि पुस्तक पर्व के लोकार्पण समारोह में वे सबसे पहले पहुंचने वालों में थीं। लोकार्पण के बाद मुझसे कहा, ''मायामृग, तुमने बहुत अच्छा काम किया है, मैं तुम्हें इसके लिए 'ट्रीट' दूँगी। यह ट्रीट अब हमेशा के के लिए due हो गई। इन किताबों के सेट को देखकर इतनी खुश हुईं कि जितनी वे बोधि से खुद की पुस्तक 'तितली, चिडिया और तुम' आने पर भी नहीं हुईं थीं।
शिक्षा, बाल मनोविज्ञान, साहित्य और समाज की जैसी समझ उन्हें थी, वह दुर्लभ है। हिंदी, बंगला और इंग्लिश भाषाओँ पर उनका पूरा अधिकार था। सबसे खास और न भूलने वाली एक बात है उनका स्नेहिल वयव्हार।
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विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि ..
जवाब देंहटाएंshradhanjali...
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंsaadar naman !
जवाब देंहटाएंpunay aatam sushmitaa jee ke dev lok gaman ki soochana sh. prem chand ghandhi jee me msg se mili ,aisi shakshiyat ko shabdanjali ! bhavanjali !
naman !
ishwar oonki aatama ko shanti pradan kare.
om shanti shanti !