परसों शाम दिल्ली से लौटा। इस बार दिल्ली कुछ खास थी। j n u में सुयश-रश्मि, गनपत, पुखराज जांगिड, हादी भाई और नितिन से मुलाकात हुई। सुयश सुप्रभ भाषा के जानकार और भाषा के प्रति काफी संवेदनशील हैं। हिंदी के वे जर्मन के भी ज्ञाता हैं। नई तकनीक का इस्तेमाल प्रिंट मीडिया के हित में कैसे हो, इस पर अच्छी चर्चा हुई। मित्र पुखराज जांगिड राजस्थानी ko भाषा के रूप में प्यार करने वालों में हैं लेकिन खास बात यह कि वे हमारे कुछ अन्य मित्रों की तरह इस मुद्दे पर आक्रामक नहीं हैं। वे राजस्थानी की ताकत और कमजोरिओं पर खुलकर बोले। गनपत जी साहित्य और पुस्तक प्रेमी हैं। रश्मि, सुयश की जीवन संगिनी हैं और खास बात यह की वे भी भाषागत संस्कारों को लेकर काफी संवेदनशील हैं। हादी भाई थियेटर से जुड़े हैं। सुयश जी के शब्दों में हादी भाई J N U में आर्ट थियेटर को जिन्दा रखने वालों में से हैं।
J N U वाकई बोद्धिक विमर्श और सीखने का स्थान है, खास तौर पर तब जबकि वहां ऐसे मित्र हों। मेरा दिल्ली जाना सार्थक हुआ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
badhai..
जवाब देंहटाएंमाया मृग जी, आपका यहाँ आना कई मायनों में यादगार रहेगा. यह हमें आम पाठक की दृष्टि से महंगाई भरे दिल्ली के किताबीय अँधेरे में भी रौशनी की आश तो देकर गया ही है साथ ही उससे लड़ने का हौसला भी. शब्दों और विचारों की ताकत में भरोसा और भी गहरा हुआ. आ...शा करता हूँ की यह हमेशा बरक़रार रहेगा. आपकी वापसी के ठीक बाद काफी लोग वहाँ जुटे, जैसा कि जे एन यू में होता है कि सामाजिक रूप से वह रात में ही जागता है. कई साथी आपकी इस ऐतिहासिक योजना से जुड़ना चाहते है. काश, गंगा सहाय जी सभा-विसर्जन के 2 मिनट बाद न पहुंचकर 2 मिनट पहले पहुँचते. चंद्रकांत देवताले जी को पढ़ चुका है और अध्ययन जारी है... आभार...
जवाब देंहटाएंMitr Chain singh ji aur Pukhraj ji
जवाब देंहटाएंaapka pyar hamesha aise hi bana rahe...