जाने क्यों कच्चे मकान के बाहर खुले थहडे पर गली के लड़कों के साथ पकड़म -पकड़ाई और शोले फिल्म की शूटिंग के दिन रह-रह कर याद आते हैं। याद आता है की टीटी नाम के लड़के को बसंती का रोल करने के लिए मनाने को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते थे। बाकी सभी लड़कों को काली माता की सोगंध देनी पड़ती थे की शूटिंग के बाद कोई इसको बसंती कहकर चिडायेगा नहीं...अगर किसी ने ऐसा किया तो कल की शूटिंग में बसंती वही बनेगा...
मुझे मालूम है साहित्य में इसे नास्टेल्जिया कहा जाता है, पर ये है तो क्या करें?
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क्या खूबसूरत नास्टेल्जिया है...
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