शनिवार, 12 जून 2010

पुस्तक पर्व पर हुई बहस के बारे में लक्ष्मी शर्मा का आलेख

बोधि पुस्तक पर्व पर चल रही चर्चाओं पर डॉक्टर लक्ष्मी शर्मा ने एक टिप्पणी की है। मित्रों के लिए यहाँ जस की तस रख रहा हूँ।

पिछले दिनों मायामृग ने पुस्तक पर्व के नाम पे जो दुष्कृत्य (?) किया उससे साहित्यिक जगत (??)में भारी उद्वेलन उत्पन्न हुआ और इस प्रकरण पर काफी गंभीर (???) वैचारिक (????) विमर्श(?????) भी हुआ।अब तो ठंडा भी पड़ने लगा है। फिर भी आप्त वाक्य या अंतिम टिप्पणी एक लतीफे के रूप में -एक पति था .पति जैसा( पति परम गुरु )पति। और एक पत्नी थी ,पत्नी जैसी (कार्येषु दासी, क्षमा धरित्री ...)पत्नी। तो दोनों साथ रहते, पत्नी खाना बनाती और पति नुक्स निकालते .(भई विवाह सिद्ध अधिकार जो ठहरा )एक दिन पत्नी ने अंडा बनाया पति ने प्लेट फैंक दी -किसने कहा अंडा बनाने को ?अगले दिन पत्नी ने आमलेट बनाया ,पति ने थप्पड़ जमाया -मूर्ख ,किसने कहा आमलेट बनाने को? अगले दिन पत्नी ने एक प्लेट में उबला अंडा और एक प्लेट में आमलेट बना के रखा, पति ने लात मारी -बेवकूफ ये भी नहीं जानती किस अंडे को उबालना होता है और किस का आमलेट बनाना होता है। जय हो .

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