... कि जीवन ठहर न जाये
आओ कुछ करें
कुछ तो करें।
शहर के बाहर
उस मोडे के डेरे में
छुपकर बेरियाँ झडकाएं
और बटोरें खट्टे-मीठे बेर।
चलो ना आज
रेल कि पटरी पर
दस्सी रख कर
गाड़ी का इंतजार करें।
कितनी बड़ी हो जाती है दस्सी
गाड़ी के नीचे आकर।
चलो तो-
झोली में भर लें
छोटे-बड़े कंकर और ठिकरियां
चुंगी के पास वाले जोहड़े में
ठिकरियों से पानी में थालियाँ बनायें
छोटी-बड़ी थालियाँ।
थालियों में भर-भर सिंघाड़े निकालें।
छप-छप पैर चलाकर
जोहड़े में अन्दर-बाहर खेलें।
या कि -
गत्ते से काटें बड़े-बड़े सींग
काली स्याही में रंगकर
सींग लगाकर
उस मोटू को डराएँ
कैसे फुदकता है मोटू सींग देखकर।
कितना कुछ पड़ा है करने को।
अख़बारों से फोटुएं काट-काट कर
बड़े सारे गत्ते पर चिपकाना
धागे को स्याही में डुबोकर
कॉपी में 'फस्स' से चलाना
और उकेरना
पंख, तितली या बिल्ली का मुंह।
चोर-सिपाही, पोषम पा भाई पोषम पा
खेले कितने दिन गुज़र गए...
चलो ना कुछ करें
कहीं से भी सही - शुरू तो करें
... कि जीवन ठहर न जाये
चलो कुछ करें.... ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें