आज सुबह बच्चे को स्कूल छोड़ कर आते समय देखा कि एक गाय घायल हालत मैं बीच सड़क पर पड़ी है। लोग साइड से उसे बिना देखे आ जा रहे हैं। मैंने गाड़ी रोकी और देखने लगा कि आखिर इसे हुआ क्या है। तभी एक न्यूज़ पेपर का फोटोग्राफर भी वहां रुका। उसने घायल गाय का फोटो लिया और संवेदनावश वेदना में सहायता का दावा करने वाली एक संस्था को फ़ोन कर दिया। जवाब मिला गाड़ी एक-डेढ़ घंटे में पहुंचेगी। जब उसने अच्छी-खासी नाराजगी जताई तब कहा- कोशिश करते हैं जल्दी आने की।
इस बीच काफी 'गौ भक्त' जमा हो गए। जो गाय हिल भी नहीं पा रही थी उसे चारा डालने की होड़ लग गई।
इस पूरी घटना पर सवाल केवल दो- पहला ये कि जानवरों की मदद के नाम पर अच्छा खासा अनुदान और चंदा बटोरने वाली इन संस्थाओं की जिम्मेदारी कैसे तय हो? दूसरा ये कि गौ भक्ति सिर्फ चारा डालने से ही होती है?
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