शनिवार, 4 सितंबर 2010

स्कूल या यातना गृह

पल्लू में एक मासूम की बेरहम पिटाई का मामला सामने आया है। जयपुर में, और अन्य जगहों से पहले भी इस तरह की घटनाएँ देखने-सुनने में आती रही हैं। पता नहीं हम लोग सभी कब होंगे और लोकतान्त्रिक तो पता नहीं होंगे भी या नहीं...मासूम बच्चे को पीटते हुए हमारे कथित गुरुजनों के हाथ किसी शर्म, दबाव या अदालतों के आदेशों से भी रुकने में नहीं आ रहे। कोई और काम-धंधा ना मिलने की मजबूरी में मास्टर बने ये "गुरुजन" किसी भी हद तक गिर जाते हैं। मारपीट-दुर्वयवहार, छेड़छाड़ और अनैतिक वयवहार जिनका सवभाव है उन्हें शिक्षा जैसे गंभीर क्षेत्र से कैसे दूर रखा जाये, इस पर बहुत कम सोचा गया है। अब सोचा जाना चाहिए।
अध्यापक वेश में ऐसे हिंसक अपराधी को तो सजा मिलनी ही चाहिए। स्कूल के नाम पर चल रही शिक्षा की फुटपाथी दुकानों पर भी नकेल कसे जाने की जरूरत है। पल्लू के इस स्कूल के मालिक (कहने के लिए स्कूल प्रशासन ) और मामला दर्ज करने की बजाय पीड़ित को ही धमकाने वाले पुलिस कर्मियों की भी सार्वजानिक निंदा करनी चाहिए। पल्लू एक छोटा क़स्बा है, यहाँ अभी भी सामाजिक निंदा दबाव बना सकती है।
अदालत में इस्तगासा तो करना ही चाहिए।
अन्य अभिभावकों को भी इस घटना के विरोध में खुलकर आना चाहिए, दोनों हाथो से पैसा लूटने वाले हमारे बच्चों पर हाथ भी उठायें..क्यों भाई? अगर स्कूल स्कूल ना रहकर यातना गृह बन जाये तो उसका बंद होना ही हितकर है।
मीडिया के साथियों को भी इस मामले को पुरजोर ढंग से उठाना चाहिए। अनिल जी ने यह मामला सामने लाकर बेहतर काम किया है.

1 टिप्पणी:

  1. बुधवारीय चर्चा मंच पर है
    आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    charchamanch.blogspot.com

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